Posts

Showing posts from July, 2021

कलम

इस उलझन भरी जिंदगी में कभी कोई ऐसा मिल जाता है जो कुछ न कहते हुए बहुत कुछ कह जाता है  ऐसा ही वाक्या हुआ था शायद कुछ सालों पहले  स्नातक के दूसरे साल में अंतिम पेपर के दिन एक सखी से मिलना हुआ था हुआ यु की हमारा उस दिन औजार बाक्स ही घर छूट गया  भूलने की बीमारी तो है बहुत पुरानी  ये पता तब चला क्लास में पहुंचे अब क्या करें सोचा यही से कलम उधार मांग लिया जाय  हमने माँगा तो देख तो ऐसे रहे थे जैसे हमने उनसे किडनी मांग ली हो फिर एक भाई ने कलेजे पर हाथ रखकर नीला कलम दिया  बोला, भाई... लौटा देना....  जी बिलकुल 😊 अब काले की दरकार थी तभी बगल वाली लाइन से वो सखी ने हाथ बढ़ाया और हसते हुए कलम दिया  फिर हमने सोचा कि चलो कोई तो मुस्कुराकर दिया वर्ना यहां सब अपने में मस्त हैं  परीक्षा खत्म हुई सर कॉपी ले रहे थे तभी खिड़की से दोस्त ने बोला अबे सा## कितना लिखेगा चल जल्दी  फिर कलम वाले ने बोला भाई पेन..  देकर हमने फिर हमने इधर-उधर देखा लेकिन वो सखी दिखीं नहीं बाहर आए तो हम ने फिर देखा लेकिन न दिखीं  हम ने कहा छोड़ो यार कभी दे देंगे  अबे सा##...

यादें

  अब मान भी जाओ...  क्यूंकि तुम्हारे रूठने भर से मैं कितना परेशान हो गया हू कमरा साफ़ तो छोड़ो झाड़ू कब लगाए हैं ये याद भी नहीं न ही दाई को लगाने देता हूं  हर चीज़ इधर-उधर बिखरे पड़े हैं कमरे में  भूलकङ तो मैं कितना हू ये तो तुम जानती हो हर चीज़ भूल जाता हू यहां तक की भोजन खाना भी कितनी रात तो मैं बिन खाए ही सो जाता हू तुम्हें एसे नहीं रूठना चाहिए  पहले गांव थी तुम तो मैं ज्यादा खुश था काम लोड उस वक्त भी था लेकिन अच्छा था अब तो लगता है हर चीज़ हर काम अधूरा सा है जब तुम पहली दफा शहर आई तो  तुमने सारा सामान व्यवस्थित रख दिया था पता है तुम्हें  मैं कितना परेशान हो गया था आदत नहीं थी न  फिर धीरे धीरे मुझे चीजे सम्भालना सीख रहा ही था कि पता नहीं किसकी नज़र लग गई  दाई कहती हैं कि साहब जब भोजन नहीं खाना होता तो दो लोगों के लिए क्यु बनवाते है चाय भी दो बनवाते है पीते कोई नहीं है काहें बर्बाद करते हैं  अब उसे कौन समझाए कि तुम रूठी हो तो हम कैसे खा पी ले  अब तुम ही बताओं ऐसे कोई रूठता है भला...  लोग पता नहीं क्या बाते करते हैं कि मैं किस...