यादें

 





अब मान भी जाओ... 


क्यूंकि तुम्हारे रूठने भर से मैं कितना परेशान हो गया हू कमरा साफ़ तो छोड़ो झाड़ू कब लगाए हैं ये याद भी नहीं न ही दाई को लगाने देता हूं 


हर चीज़ इधर-उधर बिखरे पड़े हैं कमरे में 


भूलकङ तो मैं कितना हू ये तो तुम जानती हो

हर चीज़ भूल जाता हू यहां तक की भोजन खाना भी कितनी रात तो मैं बिन खाए ही सो जाता हू


तुम्हें एसे नहीं रूठना चाहिए 


पहले गांव थी तुम तो मैं ज्यादा खुश था काम लोड उस वक्त भी था लेकिन अच्छा था


अब तो लगता है हर चीज़ हर काम अधूरा सा है


जब तुम पहली दफा शहर आई तो 

तुमने सारा सामान व्यवस्थित रख दिया था पता है तुम्हें 


मैं कितना परेशान हो गया था आदत नहीं थी न 


फिर धीरे धीरे मुझे चीजे सम्भालना सीख रहा ही था कि पता नहीं किसकी नज़र लग गई 


दाई कहती हैं कि साहब जब भोजन नहीं खाना होता तो दो लोगों के लिए क्यु बनवाते है चाय भी दो बनवाते है पीते कोई नहीं है काहें बर्बाद करते हैं 


अब उसे कौन समझाए कि तुम रूठी हो तो हम कैसे खा पी ले 


अब तुम ही बताओं ऐसे कोई रूठता है भला... 





लोग पता नहीं क्या बाते करते हैं कि मैं किससे घण्टों बाते करता हू 

लगता है पागल हो गया है पत्नि जाने के बाद 




अब उन्हें कौन समझाएं कि तुम मेरे पास ही तो हो हमेशा के लिए 





 


                            *****





(पत्नि के गए हुए ढाई साल हो गये) 


Comments

Popular posts from this blog

बच्चा

माँ 💗

कलम